यमुनानगर:-चौ.चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र दामला द्वारा मूंग की वैज्ञानिक खेती पर किसान गोष्ठी का आयोजन किया गया
। इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ संयोजक डॉ नरेंद्र गोयल ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि किसानों को फसल विविधीकरण पर बल देना चाहिए। उन्होंने बताया कि अनाज वाली फसलों के साथ दलहनी व तिलहनी फसल भी अवश्य लगानी चाहिए। उन्होंने बताया कि दलहनी फसलें उगाने से मृदा की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है साथ ही साथ रसायनिक उर्वरकों की खपत भी कम हो जाती है दलहनी फसलें वायु में विद्यमान नाइट्रोजन को पादप के उपयोग योग्य बनाती हैं तथा इन फसलों की जड़ों में राइजोबियम बैक्टीरिया के कारण जडग़ांठ बन जाती हैं जो कि नाइट्रोजन योगीकीकरण का काम करते हैं जिससे ज्यादा मात्रा में बाहर से उर्वरक देने की आवश्यकता नहीं पड़ती। उर्वरक पर लगने वाला अतिरिक्त खर्चा कम हो जाता है। उन्होंने बीज को उपचारित करने की विस्तार पूर्वक जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सर्वप्रथम बीज को कीटनाशक से उपचारित करें उसके बाद फफूंदनाशक से बीज को उपचारित करना चाहिए तथा बिजाई के एक दिन पहले या कुछ घंटे पहले राइजोबियम कल्चर से बीज को उपचारित करना चाहिए।प्रशिक्षण सहायक करण सिंह सैनी ने किसानों को जैविक विधि से सब्जियां उत्पादन की तकनीकी के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी। उन्होंने बताया कि किसानों को सब्जी उत्पादन के लिए जैविक उत्पादों जैसे हरी खाद, केंचुए की खाद, मुर्गी की बीट खाद, गोबर की खाद, फसल अवशेषों से वेस्ट डी-कंपोजर द्वारा तैयार कंपोस्ट आदि का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए। उन्होंने बताया कि रोग व कीटों का नियंत्रण भी जैविक विधि जैसे नीम आधारित कीटनाशक, नीम की निंबोली व पत्तियों का पाउडर तथा गाय के उत्पाद से बना पंचगव्य का भी इस्तेमाल करना चाहिए। इस विधि में रसायनिक उर्वरकों, रसायनिक दवाइयों का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। इस अवसर पर किसानों को एक एकड़ में मूंग की फसल लगाने के लिए 10 किलो मूंग का बीज दिया गया तथा राइजोबियम कल्चर बीज को उपचारित करने के लिए भी दिया गया। इस अवसर पर विभिन्न गांव से लगभग 40 प्रगतिशील किसानों ने हिस्सा लिया।